विजयादशमी पर नारायण सेवा संस्थान अपना 40 वाँ स्थापना दिवस मनाने जा रहा है। नारायण सेवा संस्थान सिर्फ एक संस्था नहीं है अपितु यह समाज में अलग थलग रह रहे दिव्यांग लोगों को नया जीवन देने के मिशन में कार्य कर रहा एक ऐसा गैर सरकारी संगठन है जिसने विगत 39 वर्षों में सही मायनों में दीन-दु:खी, दिव्यांग, निर्धन लोगों के जीवन में बदलाव लाने का कार्य किया है।
नारायण सेवा संस्थान, राजस्थान के उदयपुर स्थित गैर-सरकारी और गैर-लाभकारी संगठन है। इसकी देश भर में 480 से अधिक शाखाएं मौजूद हैं। विगत कई वर्षों में संस्थान ने हर आयाम में लोगों के जीवन को बदला है। यह संस्थान मुख्य तौर पर दिव्यांगों की भलाई के लिए कार्य करता है और उन्हें समाज की मुख्य धारा से जोड़ने का प्रयास करता है। इसके अलावा मूक-बधिर और प्रज्ञा चक्षु बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा एवं भोजन उपलब्ध कराकर उनके जीवन को संवारने का कार्य करता है। इसके साथ ही संस्थान दिव्यांगों के कौशल विकास के लिए कार्य करता है ताकि अन्य लोगों की तरह ये लोग भी जीवन में आगे बढ़ सकें।
संस्थान का मुख्य उद्देश्य
संस्थान का उद्देश्य समाज के शारीरिक और आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों की मदद करना है। यहां पोलियो और अन्य जन्मजात अक्षमताओं से पीड़ित रोगियों का सुधारात्मक सर्जरी के माध्यम से नि:शुल्क उपचार किया जाता है। उपचार के उपरांत जरूरतमंदों को नि:शुल्क कृत्रिम अंग भी प्रदान किए जाते हैं, ताकि अन्य लोगों की तरह दिव्यांग भी आसानी से जीवन यापन कर सकें।
चिकित्सालय
वर्तमान में संस्थान के पास उदयपुर में 1100 बिस्तरों की क्षमता वाला चिकित्सालय है, जहां देश और दुनिया भर के मरीज पोलियो से संबंधित उपचार और सुधारात्मक सर्जरी के लिए आते हैं। अब तक, इस धर्मार्थ संगठन ने बिना किसी जाति, धर्म या लिंग भेद के 4,43,491 से अधिक दिव्यांग लोगों की सुधारात्मक सर्जरी की है। संस्थान की तरफ से उपलब्ध करवाई गई चिकित्सा सेवाएं पूर्णतः नि:शुल्क हैं।
संस्थान के स्थापना की कहानी
नारायण सेवा संस्थान की स्थापना विजयादशमी के पावन अवसर पर 23 अक्टूबर 1985 को पूज्य गुरुदेव पद्मश्री कैलाश मानव जी के द्वारा की गई थी। गुरुदेव उस समय डाक एवं तार विभाग, भारत सरकार में कार्यरत थे। आपश्री ने जब सरकारी अस्पताल में एक रोगी को अस्पताल से प्राप्त भोजन की थाली में से एक रोटी खाकर, बाकी बची हुई तीन रोटियां तकिये के नीचे रखते हुए देखा, तो उससे पूछा- “आपको भूख नही है क्या”? तो सामने खड़े हुए किसना जी सुबकते हुए कहा, “मैं आठ से दस चपाती खा सकता हूँ। मुझे इतनी भूख है। लेकिन मैरे साथ मेरे दो भाई एवं पिताजी भी हैं। हम चारो इस थाली के साथ मिली एक-एक रोटी खा लेते हैं और पेट पर कपड़ा बांध कर सो जाते हैं ताकि भूख ना लगे।“
इस घटना ने गुरुदेव को झकझोर दिया। तब उन्हें लगा कि मुझे अस्पताल में रोगियों के साथ आए घरवालों के लिए भोजन की व्यवस्था करनी चाहिए। अतः उन्होने 20 तेल के कनस्तर कबाड़ी से खरीदे, उसके उपर का ढक्कन काटा, धोया, साफ किया, तथा डाक एवं तार विभाग के कर्मचारियों के घर पर उक्त तेल के कनस्तर रखते हुए माताओं से प्रार्थना की, कि आप रोगियों के परिजनों के निमित्त प्रतिदिन एक मुठ्ठी आटा सुबह-शाम इस कनस्तर में डालें। मैं आपके घर से प्रतिदिन आटा एकत्रित करने आउंगा तथा रोटी एवं सब्जी बनाकर अस्पताल में रोगियों के साथ वालों को भोजन कराउंगा। बस फिर क्या था, 13 वर्षों तक कैलाश जी ने सुबह एवं शाम प्रतिदिन सरकारी अस्पताल में रोगियों के साथ आये परिजनों को भोजन कराने का क्रम जारी रखा। इस प्रकार संस्थान की शुरूआत हुई।
दिव्यांगों का पूर्ण पुनर्वास
नारायण सेवा संस्थान दिव्यांगों को पूर्ण पुनर्वास प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध है। अभी तक संस्थान दिव्यांग लोगों को उनके पैरों पर चलाने के साथ ही उनकी गृहस्थी बसाने के लिए 42 दिव्यांग सामूहिक विवाह समारोह आयोजित कर चुका है। जहां दिव्यांगों का नि:शुल्क विवाह कराया गया है। अभी तक संस्थान द्वारा कुल 15 दिव्यांग टैलेंट शो आयोजित किए गए हैं। इसके अतिरिक्त संस्थान द्वारा व्हीलचेयर क्रिकेट टूर्नामेंट, ब्लाइंड क्रिकेट टूर्नामेंट, पैरा तैराकी, पैरा टेनिस टूर्नामेंट भी आयोजित किए गए हैं।
संस्थान का लक्ष्य
- सम्पूर्ण भारतवर्ष में दिव्यांगता से ग्रसित हमारे दिव्यांग भाई-बहनों को शल्य चिकित्सा कर उन्हें उनके पैरों पर खड़ा करना।
- दुर्घटना में जो भाई-बहन अपने हाथ-पैर खो चुके हैं, उन्हें सर्वोत्तम तकनीक से बने आधुनिक हाथ-पैर लगाकर समाज की मुख्य धारा से जोड़ना।
- दिव्यांगजनों को व्यावसायिक प्रशिक्षण देकर आर्थिक रूप से समृद्ध बनाना।
- खेलों में दिव्यांगजनों को खेल मैदान, प्रशिक्षक एवं अन्य सुविधाएं प्रदान कर इस योग्य बनाना ताकि वे पैरालम्पिक में भारत का नाम विश्व पटल पर रोशन कर सकें।
- सम्पूर्ण भारत में दिव्यांगजनों को समानता का अधिकार दिलवाना।
- सुगम्य भारत की परिकल्पना को मूर्त रूप देना।