शरद पूर्णिमा हिन्दू धर्म में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण त्यौहार है। जो आश्विन माह के शुक्ल पक्ष के पंद्रहवें दिन मनाया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु और धन की देवी लक्ष्मी की पूजा की जाती है। साथ ही शरद पूर्णिमा की रात्रि बेहद खास होती है। इस दिन चंद्रदेव अपनी 16 कलाओं में पूर्ण रहते हैं इसलिए आसमान में भरपूर रोशनी रहती है। इस दिन साफ आसमान मानसून के जाने का प्रतीक है।
शरद पूर्णिमा का महत्व
शरद पूर्णिमा के दिन व्रत रखने के साथ ही भगवान विष्णु की पूजा करने तथा दीन-दु:खी, निर्धन लोगों को दान देने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। साथ ही इस दिन खुले आसमान में खीर रखना बेहद शुभ माना जाता है। क्योंकि इस दिन चंद्रमा से निकलने वाली किरणें चमत्कारिक गुणों से परिपूर्ण होती है। इस दिन रात्रि जागरण करते हुए देवी लक्ष्मी की पूजा करने से व्यक्ति के जीवन से आर्थिक समस्याओं का अंत होता है और धन तथा वैभव की प्राप्ति होती है।
दीन-दु:खी, निर्धन, दिव्यांग बच्चों को भोजन कराने हेतु सहयोग करें
पूर्णिमा के दिन सनातन परंपरा में ब्राह्मणों तथा पात्र लोगों को दान देना बेहद पुण्यकारी माना जाता है। श्रीमद् भगवद् गीता में श्रीकृष्ण ने कहा है-
“यज्ञदानतप: कर्म न त्याज्यं कार्यमेव तत्।”
अर्थात् यज्ञ, दान और तप ये कर्म त्यागने योग्य नहीं हैं, इन्हें अवश्य करना चाहिए।
दान के महत्व का उल्लेख करते हुए पौराणिक ग्रंथों में कहा गया है-
अल्पमपि क्षितौ क्षिप्तं वटबीजं प्रवर्धते ।
जलयोगात् यथा दानात् पुण्यवृक्षोऽपि वर्धते ॥
जमीन पर डाला हुआ छोटा सा वटवृक्ष का बीज, जैसे जल के योग से बढ़ता है, वैसे पुण्य रूपी वृक्ष भी दान से बढ़ता है।
शरद पूर्णिमा पर दान देकर नारायण सेवा संस्थान दीन-दु:खी, निर्धन, दिव्यांग बच्चों को भोजन कराने के प्रकल्प में सहयोग करके पुण्य के भागी बनें।
आपके दान से 50 जरूरतमंद, निर्धन और दिव्यांग लोगों को वर्ष में एक दिन आजीवन भोजन उपलब्ध कराया जाएगा।