कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को बैकुंठ चतुर्दशी के नाम से जाना जाता है। यह चतुर्दशी आध्यात्मिकता और परंपरा को भक्ति के ताने-बाने में पिरोती है। इस पर्व का उल्लेख पौराणिक कथाओं में मिलता है। जिसे पूरे भारत में उत्साह के साथ मनाया जाता है। बैकुंठ चतुर्दशी भक्तों को आध्यात्मिक प्रवास की पेशकश करके दिव्य मुक्ति की ओर ले जाती है।
बैकुंठ चतुर्दशी पर भगवान विष्णु और देवाधिदेव महादेव की पूजा करने का विधान है। किवदंतियों और कथाओं के अनुसार, जो भी व्यक्ति बैकुंठ चतुर्दशी पर भगवान विष्णु की पूजा करता है, उसे स्वर्ग की प्राप्ति होती है। मृत्य के पश्चात उसे भगवान विष्णु के धाम बैकुंठ में जगह मिलती है।
इस दिन है बैकुंठ चतुर्दशी
बैकुंठ चतुर्दशी 25 नवंबर दिन शनिवार को शाम 5.22 बजे से प्रारंभ होगी और अगले दिन 26 नवंबर दिन रविवार को दोपहर 3.53 बजे समाप्त होगी। इस बार बैकुंठ चतुर्दशी पर रवि योग का निर्माण हो रहा है। रवि योग दोपहर में 2.56 बजे से शुरू होगा। जो अगले दिन सुबह 6.52 बजे तक रहेगा।
आध्यात्मिक महत्व
बैकुंठ चतुर्दशी का गहरा आध्यात्मिक महत्व है। यह बैकुंठ की ओर एक प्रतीकात्मक यात्रा का प्रतीक है। इस दिन भक्त लोग पवित्र नदियों में स्नान करते हैं उसके बाद भगवान विष्णु की प्रार्थना करते हैं और उनसे आशीर्वाद मांगते हैं। इस दौरान भक्त भगवान विष्णु को फूल, धूप और दीप अर्पित करते हैं। भक्तों का मानना है कि बैकुंठ चतुर्दशी पर इन अनुष्ठानों को करने से उनके पाप नष्ट हो जाते हैं। जिससे उनके लिए बैकुंठ का मार्ग सुगम हो जाता है।
बैकुंठ चतुर्दशी पर खुला रहता है स्वर्ग का द्वार
कहा जाता है कि बैकुंठ चतुर्दशी पर स्वर्ग की द्वार खुला रहता है। जो भी इस दिन भगवान विष्णु का आराधना करता है उसे सीधे स्वर्ग की प्राप्ति होती है। कथाओं के अनुसार नारद जी के आग्रह पर भगवान विष्णु ने जय और विजय को बैकुंठ चतुर्दशी के दिन स्वर्ग के द्वार को खुला रखने के लिए कहा है।
भगवान विष्णु को बैकुंठ चतुर्दशी पर प्राप्त हुआ था सुदर्शन चक्र
एक बार भगवान विष्णु बैकुंठ चतुर्दशी पर शिव जी को प्रसन्न करने के लिए उनकी पूजा करने लगे। इस दौरान उन्होंने महादेव की कमल के फूलों से पूजा आरंभ की। भगवान विष्णु शिव जी को 108 कमल के फूल अर्पित करने वाले थे। वो एक एक करके कमल के पुष्प महादेव को अर्पित कर रहे थे। तभी शिव जी ने उनकी परीक्षा लेनी चाही। उन्होंने उन फूलों में से एक कमल का फूल गायब कर दिया। पुष्प अर्पित करते हुए भगवान विष्णु को इसका एहसास हो गया कि एक कमल का फूल कम है। तब वो अपने एक नेत्र को भगवान शिव को अर्पित करने लगे। भगवान विष्णु के नेत्रों को कमल के समान सुंदर माना जाता है। तभी महादेव प्रकट हुए और उन्होंने भगवान विष्णु को ऐसा करने से रोक दिया। इसके बाद प्रसन्न होकर महादेव ने भगवान विष्णु को सुदर्शन चक्र दिया और कहा, “इस अस्त्र के समान दुनिया में कोई दूसरा अस्त्र नहीं होगा।”
बैकुंठ चतुर्दशी पर स्नान-दान का महत्व
बैकुंठ चतुर्दशी पर स्नान-दान का महत्व माना जाता हैं। कहा जाता कि इस दिन स्नान के बाद ब्राह्मणों, निर्धन और असहाय लोगों को दान देने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है। साथ ही दान करने वाले व्यक्ति को सीधे बैकुंठ धाम में जगह मिलती है।